वृत्तम् = चर्चरी ।
अन्यानि नामानि = हरनर्तनं विबुधप्रिया कुमुद्वती।
प्रतिचरणं 18 अक्षराणि।
पार्वतीवर पार्वतीश्वर पार्वतीहर पाहि माम्
पार्वतीधन पार्वतीघन पार्वतीजन नन्द्यताम् ।
धीरसागर धीरनागर धीरनायक धीयताम्
वीरपूजित वीरसूचित वीरशंकर रक्ष्यताम् ।।1।।
पार्वतीधन पार्वतीघन पार्वतीजन नन्द्यताम् ।
धीरसागर धीरनागर धीरनायक धीयताम्
वीरपूजित वीरसूचित वीरशंकर रक्ष्यताम् ।।1।।
आशुतोषण चाशुरोषण चाशुमोचन मुञ्च माम्
भस्मकाय कपालमाल पिनाकहस्त सुरक्ष माम्।
त्र्यम्बकेश्वर हे त्रिलोचन हे त्रिविक्रम रक्ष्यताम्
हे लयङ्कर हे भयङ्कर हे त्रिशूलधराव माम् ।।2।।
भस्मकाय कपालमाल पिनाकहस्त सुरक्ष माम्।
त्र्यम्बकेश्वर हे त्रिलोचन हे त्रिविक्रम रक्ष्यताम्
हे लयङ्कर हे भयङ्कर हे त्रिशूलधराव माम् ।।2।।
हे सुरेश्वर हेऽसुरेश्वर हे स्वरेश्वर
पायताम्
हे सदाशिव हे नटेश्वर हे महेश्वर नन्द्यताम् ।
शैलजावर शैलवासक शत्रुजिद्वर पाहि माम्
हे जटाधर हे नटेश्वर धूर्जटे नट रक्ष्यताम् ।।3।।
हे सदाशिव हे नटेश्वर हे महेश्वर नन्द्यताम् ।
शैलजावर शैलवासक शत्रुजिद्वर पाहि माम्
हे जटाधर हे नटेश्वर धूर्जटे नट रक्ष्यताम् ।।3।।
हे शुभङ्कर हे शिवङ्कर हे नयेश्वर पाठ्यताम्
सर्वशास्त्रक सर्वरक्षक सर्वभक्षक रक्ष माम् ।
मौलिगङ्ग च मौलिचन्द्र च व्याघ्रचर्मधरैहि माम्
हे पुरान्तक हे स्मरान्तक हे गजान्तक पाहि माम् ।।4।।
सर्वशास्त्रक सर्वरक्षक सर्वभक्षक रक्ष माम् ।
मौलिगङ्ग च मौलिचन्द्र च व्याघ्रचर्मधरैहि माम्
हे पुरान्तक हे स्मरान्तक हे गजान्तक पाहि माम् ।।4।।
भूतपूजित
मान्यवन्दित भक्ततारक रक्ष हे ।
नीलकण्ठ मुनीन्द्रपूजित नीलशङ्कर पाहि माम्
कण्ठसर्प तपस्विसाधुमहासुरेश कलेश हे
कार्तिकेयगुरो गणेशगुरो महेश सुरक्ष माम्।। 5।।
नीलकण्ठ मुनीन्द्रपूजित नीलशङ्कर पाहि माम्
कण्ठसर्प तपस्विसाधुमहासुरेश कलेश हे
कार्तिकेयगुरो गणेशगुरो महेश सुरक्ष माम्।। 5।।
शैवशङ्कर शैवशङ्कर शैवशङ्कर शं कुरु ।
गोपतीश्वर चिन्तनेश्वर वन्दनां मम स्वीकुरु ।।
गोपतीश्वर चिन्तनेश्वर वन्दनां मम स्वीकुरु ।।
।।
इति श्रीहरिविरचितं शिवपञ्चकं सम्पूर्णम् ।।
श्रीहरि सर, शिवपञ्चकाच्या दुस-या श्लोकामधील "मुञ्च माम्" हा शब्दप्रयोग बरोबर आहे का? ह्याचा अर्थ "माझा त्याग कर" असा होतो ना? "मुञ्च माम्" च्या जागी "मोचय" हवे होते, असे वाटते. कृपया आपले मत कळवावे.
ReplyDeleteYou are right sir. But, the root has various shades. One of the meaning is to set free. We get a reference in Raghuvansham 2.1 as यशोधनो धेनुमृषेर्मुमोच । Thanks for your suggestion. Please kindly post your suggestions.
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