Tuesday 3 May 2016

।। अंगार्इगीतम् । ।
                 श्रीहरि:

वायुर्वहति पर्वते स मन्दं मन्दम् ।
बालको (बालिका) मे याति निद्रां मन्दं मन्दम् ।। धृ ।।

गगने स याति चन्द्रो मन्दं मन्दम्
धरायामपि वहति गङ्गा मन्दं मन्दम् ।
प्रासॄता शान्तिश्च भुवने मन्दं मन्दम्
नीडे सुप्ता विहङ्गा मन्दं मन्दम् ।। 1 ।।

सुप्तं जनजीवनं जलजीवनं वनजीवनम्
श्वास एकीभूय तेषां वहति मन्दं मन्दं  ।। 2 ।।

वायुर्वहति पर्वते स मन्दं मन्दम्
बालको मे याति निद्रां मन्दं मन्दम् ।।

About the Author

Shreehari Gokarnakar

Author & Editor

He is a Teacher and researcher in Sanskrit language.

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